ShreeNathji “Darshans” Varta
ShreeNathji leela: “Lalan” Darshans sakshatkar at Shri Girirajji Mukharwind
A Varta in ShreeNathji’s words:
ShreeNathji ‘Live’ darshan Play at Shri Giriraj Mukharwind in 2005
श्रीनाथजी के शब्दों में:
श्रीनाथजी का दिव्य खेल और दर्शन श्री गिरिराज मुखारविंद पर, २००५ में,
Varta in ShreeNathji’s words:
ShreeNathji Live darshan Play at Shri Giriraj Mukharwind in 2005
यह पोस्ट अद्भुत है।इस पोस्ट में बात कर रहे हैं उस श्रीनाथजी के अविश्वसनीय दर्शन की जो हमें उनकी कृपा से मिले, और श्रीनाथजी स्वयं इसके बारे में एक वार्तालाप में हमें समझा रहे हैं। यह कुछ इतना असामान्य है, की मैं इसे भागों में समझाने की कोशिश करती हूँ; जिस से पाठक सही मतलब समझ सकें।
This is an extraordinary post. It talks about the incredible darshans which ShreeNathji blessed us with and the related conversation where ShreeNathji Himself talks about this happening and anubhuti. As it is so, so out of ordinary I will need to describe it in parts to help the reader in correct understanding.
– यह दर्शन क्या हैं:
– दर्शन का विवरण:
– श्रीनाथजी ‘लालन’ स्वरूप में प्रगट होते हैं:
– श्रीनाथजी अपने शब्द में घटना समझाते हैं:
– दिव्य वार्तालाप स्वयं श्रीनाथजी के शब्दों में:
– What are these Darshans:
– Details of this Darshan:
– ShreeNathji Appears as Lalan in all our photos:
– ShreeNathji also explains the happening to me in His own words:
– The conversation in ShreeNathji’s own words:
यह दर्शन क्या हैं:
यह असाधारण अविश्वसनीय घटना उन ‘लालन स्वरूप’ दर्शन के बारे में है, जो श्रीनाथजी ने गिरिराज जी की उस पवित्र शिला में देने की कृपा करी, जिसे उनका दिव्य मुखारविंद मान कर पूजन करा जाता है। यह जतीपुरा, मथुरा में स्थित है।
यह दिव्य अनुभूति ९ जून २००५ की है।श्रीनाथजी ने दर्शन के साथ साथ हमें उस अद्भुत रूप के तस्वीर भी लेने की अनुमति दे दी।किंतु इन दर्शन चित्र को आपके बीच २४।१०।२०१४ में ही प्रस्तुत कर सके, श्रीनाथजी के हुकुम के मुताबिक।
What are these Darshans:
This extraordinary incredible happening is about ShreeNathji granting us His Sakshat Darshans’ as ‘Lalan Swarup’, from the Pavitra Shila that represents the ‘Mukharvind’ of ShreejiBaba, situated on Shri Giriraj Govardhan at Jatipura, Mathura at Vraj Mandal.
This divine anubhuti happened on the 9th June 2005. ShreeNathji also gave permission to take pictures of this extraordinary darshans that we were lucky to have. But we had to wait for nine long years, till the 24.10.2014, when we received ShreeNathji’s hukum to make these photos and details public.
दर्शन वार्ता पूर्ण पढ़ने और तस्वीर (जिनमें श्रीनाथजी ने साक्षात दर्शन दिए हैं और फोटो खींचने की अनुमति भी दे दी) देखने के बाद, आप सभी को मानना ही पड़ेगा, की हमारे प्यारे ठाकुरजी श्रीनाथजी; श्री गोवर्धननाथजी, आज फिर एक बार अपनी दिव्य लीला हमारे साथ बाहरी दुनिया में दोहरा रहे हैं।
After reading about the darshan Varta and seeing the pujan photos (in which ShreeNathji gave us sakshat darshans and permission to photograph His Mukharwind), you will have to believe that our beloved Thakurjee, ShreeNathji, Shree GovardhanNathji, yet does His Divine Leela and Play in the outer world.
पूजन के समय के ये चित्र पूर्ण तरह से विशुध हैं और उनपर कोई छेड़छाड़ नहीं करी गयी है।आज के जमाने में, फोटोशाप के जरीए फोटो को बदल कर उस में कुछ भी डाल सकते हैं।
किंतु जो आपके सामने दर्शन फोटो रखी गयी हैं, अछूती हैं। जो उज्जवल सफेद ऊर्जा दिखाई देती है, वो साक्षात श्रीनाथजी के दर्शंन हैं, ‘लालन स्वरूप’ में।(ये मेरा सौभाग्य है, की २००५ में मैं नेगेटिव रोल वाला कैमरा इस्तेमाल करती थी; वो नेगेटिव आज प्रमाण के रूप में हैं)
The photos are totally authentic as taken at the time of pujan and not tampered with in any way. In today’s day and age with photoshop one can create anything in a photo. What I have published here as darshans are untouched artificially. The ujjaval white urja that you can see are direct darshans of ShreeNathji in ‘Lalan Swarup’. (I am lucky that in 2005 I used a roll camera, so have all the negatives as proof).
यह जानकारी पढ़ कर आप के मन में अनेक सवाल जरूर खड़े होंगे;
‘ठाकुरजी आभा को क्यों दर्शन देंगे, ये ना तो वल्लभ कुल की है, और ना ही पुष्टिमार्गी है;
और चलो मान भी लिया उसपर कोई विशेष कृपा हो गयी है, श्रीनाथजी इसे प्रचारित करने का हुकुम क्यों देंगे।
क्या सभी वल्लभ कुल के बालक और गुरु हमेशा से मना नहीं करते की हैं, की कोई भी दिव्य अनुभूति को बाहर प्रचलित नहीं करना चाहिए’?
किंतु सत्य ये भी है की तीनों मुख्य पुस्तक: श्रीनाथजी प्रागट्य वार्ता, ८४ वैष्णव,२५२ वैष्णव की वार्ता, श्रीजी के उनके भक्तों के साथ हुए विविध खेल के अभिलेखों का प्रस्तुत करन पर ही निर्धारित हैं।
You as a reader may wonder and question, rightly so; ‘Why will Thakurji grant darshans to Abha, who is she; she is not a part of the Vallabh Kul, nor even a Pushtimargi; and even if all that she describes here is true, why will ShreeNathji give her hukum to publicise it. Don’t all the Vallabh Kul balaks and gurus tell us to never share any divine encounter or anubhuti with anyone else.
But fact remains; that the three main books, ShreeNathji Pragaty Varta, 84 Vaishnavas, 252 Vaishnav ki varta, are all only based on the documentation of ShreeNathji play with His bhakts. These pavitra granths give us a different outlook on sharing divine Play anubhuti with Thakurjee.
श्रीनाथजी साहित्य के अनुसार, उनके १४०९ के प्रागट्य का एक मुख्य उद्धेश उनके पुष्टि जीव को अपने भीतर समावेश कर लेना था।ये वो जीव थे जो द्वापर युग की श्री राधा कृष्ण लीला (करीब ५२३९ वर्ष पहले-२०१७ में) से प्रथ्वी लोक के कर्म बंधन में अटक गए थे।
उनकी मुक्ती करने के लिए ठाकुरजी ने उनके मनुष्य योनि में दिव्य सेवक, श्री वल्लभ आचार्य और श्री गुसाइंजी विट्ठलनाथजी को आदेश दिया था, की उनके पुष्टि जीव को ढूँढ कर श्रीजी के भाव में ले लिया जाए। कुछ पुष्टि जीव अभी भी भटक रहे है, सांसारिक जाल में फँसे हैं। वे श्रीजी के कृपा पात्र हैं।
हमारी यह सांसारिक यात्रा बहुत जन्मों की है। कोई गत जन्मों का सम्बंध ही है; श्रीनाथजी से, श्री राधा कृष्ण से की मैं, गुरुश्री सुधीर भाई, और श्री ठाकुरजी की कृपा पात्र हूँ, और स्वयं श्रीनाथजी जो मेरे महगुरुश्री भी हैं ने मुझे उनकी अभ्यंतर लीला का भाग बनाने लायक समझा।
As per ShreeNathji literature, one of the main purpose for His Appearance in 1409 AD was to look for all pushti jeev (divine souls)and merge them into Himself.
Pushti jeev were souls who were caught in the earth karmic cycle during the Shree RadhaKrushn leela in Dwapur Yug, (some 5239 years ago-in 2017) and hence did not find mukti.
ShreeNathji Thakurjee granted them mukti in the present yug, through His sevak Shri Vallabh Acharya and Shri Gusainji.
Some of His Ansh and pushti souls are yet alive in today’s day and age; and hence are the ‘paatr’ (vessel)for ShreeNathji’s kripa.
A human journey has several birth and rebirth cycles. In some lucky birth cycles I may have been in connection with Shree Thakurjee, or Shree RadhaKrushn, because of which in my present birth I am worthy of receiving the purest of their kripa; from my Gurushree and svayam ShreeNathji who is my MahaGurushree.
दिव्य दर्शन का विवरण :
दीक्षा लेने के बाद गुरुश्री के साथ यह मेरी पहली व्रज यात्रा है ।उनके अनुदेश अनुसार आज हमारा श्री गिरिराज और राधा कुंड पूजन का कार्यक्रम है। श्री गिरिराज मुखारविंद के पहली बार मैंने दर्शन करे हैं।
९ जून, २००५, गुरुवार एक ऐसा दिव्य ऐतिहासिक दिन है जब श्रीनाथजी ठाकुरजी ने प्रथ्वी पर अपने साक्षात दर्शन देने की असीम कृपा करी; सैकडों साल सुषुप्त रहने के बाद।
Details of this Darshan:
I am at Vraj Mandal with Gurushree and as per Gurushree’s instructions we have made a program for visiting Shri Giriraj Govardhan and Radhakund. This is my first yatra to Vraj after my diksha, and the first time I’ve come for darshans at Shri Giriraj Mukharwind.
The day is Thursday and it is the powerful Siddhi Yog today.
9th June 2005 is a historically divine day when once again ShreeNathji Thakurjee grants direct darshans after a very very long period of being dormant.
हम जतीपुरा के लिए रवाना होते हैं और कुछ समय में श्रीजी के मुखारविंद पर होते हैं।भक्त लोग यहाँ उनका पूजन स्वयं कर सकते हैं, भोग, तिलक भी अर्पण कर सकते हैं।
We proceed for Jatipura, and reach the ‘Mukharvind’ of Shreeji where bhakts are allowed to personally do the pujan, offer bhog and tilak.
(Details are there later in the page)
भीड़ होने के कारण, हम अपना पूजन का समय दर्ज कर लेते हैं, लगभग एक घंटे में मेरा नम्बर आता है। हमारा पंडा अशोक भइया साथ हैं पूजन में मदद के लिए।
मेरा नम्बर आते आते मुझे ध्यान आता है, की मैं कितने लम्बे अरसे से इस पल की प्रतीक्षा कर रही थी, जब श्रीजी बाबा को प्रत्यक्ष छू सकती हूँ।
As there is a huge crowd, we book our pujan and have to wait nearly an hour for my turn. Our punda Ashokji waits here with us, to assist in the pujan.
As my turn comes, I realise how long I had been waiting for the occasion; when I could touch ShreeNathji Baba directly. Today this strong desire and wish is being fulfilled in a different way again.
अशोक जी श्रीनाथजी के इस दिव्य अभिषेक में मेरी मदद कर रहे हैं। उस पवित्र मुखारविंद को जल अभिषेक करते समय, एक बहुत ही पवित्र और दिव्य भक्ति भाव में मैं पूर्ण से खो गयी। यहाँ दिव्य उपस्थिति भरपूर है; मैं उन पवित्र शिला का अभिषेक करती हूँ जो श्रीनाथजी बाबा का मुखारविंद माना जाता है।
मैं पूजन करती हूँ जल, दुग्ध, तिलक से, उपरना, धोती, मोग्रे की दो माला, मिठाई, अर्पण करती हूँ। मोग्रा माला और मिठाई प्रसाद के रूप में हमें वापस मिलता है। गुरुश्री थोड़ी दूर खड़े होकर फोटोग्राफेर बन गए थे।
Ashokji helps me with the divine Abhishek of Shree Thakurjee, Shree GovardhanNathji.
As I wash the sacred Mukharwind with milking then water, I have the experience of this overwhelming bhao and devotion. Divine Presence at this moment is extraordinary as I do Abhishek of the Pavitra Shila that represents the ‘Mukharvind’ of ShreeNathjiBaba.
After abhishek I continue pujan with Tilak, offer Uparna and Dhoti, mithai prasad and two mogra malas. The mogra malas and mithai come back to us as Shreeji’s Prasad. Gurushree was the photographer as he took pictures of the Pujan.
श्रीनाथजी का लालन स्वरूप सभी फोटो में होता है:
गुरुश्री ने बाद में मुझे दिखाया की सभी फोटो में श्रीनाथजी अपने बाल स्वरूप ‘लालन’ के दर्शन दे रहे हैं. श्री कृष्ण, ‘लालन’ बन कर मुझे उनके मुखारविंद पर तिलक अर्पण करते हुए देख रहे हैं। सात फोटो हैं अभिषेक शृंखला के, और सभी में दर्शन बिलकुल साफ नजर आते हैं।
यह अद्भुत दर्शन इतने जीवंत है, की श्रीजी के हिलने का एहसास है जब मैं उनके मुखारविंद पर जल से पूजन करती हूँ। वे नीचे देख रहे है, जब मैं उनको धोती अर्पण करती हूँ।
ShreeNathji Appears as Lalan in all our photos:
In all of the pictures, as Gurushree showed me later, there are darshans of Bal Swarup ShreeKrishn, as “Lalan”, looking upwards watching me offer Tilak on His Mukharvind.
Darshans are very clearly visible, in the sequence of photos (there are seven pictures).
The darshans are so “Live”, that we can see Shreeji shaking as I pour water on Him for Snan.
We can also see Him looking downwards as I offer Him a Dhoti.
जो पाठक कभी मुखारविंद पर नहीं जा पाए हैं उनके लिए विवरण: यह शिला श्री गिरिराज गोवर्धन का हिस्सा है, यहाँ जो शिला है उसे श्रीनाथजी का मुखारविंद मानकर सैकड़ों साल से पूजन और सेवा करी जाती है। यह गहरी भूरे रंग की है और कभी भी कोई इस तरह से सफेद ऊर्जा या स्वरूप नहीं नजर आया इसके पहले। पोस्ट के अंत में सभी फोटो रक्खे हैं समझने के लिए। यह स्थल नाथद्वारा से सीधा सम्बंध रखता है। प्रभु श्रीनाथजी ६ महीने यहाँ और ६ महीने नाथद्वारा में शयन करते हैं, ऐसी मान्यता है।
दशहरा से राम नवमी शयन दर्शन नाथद्वारा में होते हैं;
राम नवमी से दशहरा तक शयन दर्शन श्री गिरिराज मुखारविंद पर होते हैं।
Details for those readers who have never been at the Mukharwind: The Shila that I speak about is a part of Shri ShriGiriraj Govardhan, where at a spot on the ground, one Shila (stone) is worshipped as ShreeNathji Mukharwind (Face)since hundreds of years. It is dark brown in colour with no visible darshans at all.
I am displaying the required photos at the page end for better understanding. This pavitra Shila is in direct connection to Nathdwara and is believed that Shreenathji does Shayan here for six months every year, and six months at Nathdwara.
From Dassera to Ram Navami, Shayan darshan is at Nathdwara;
From Ram Navami to Dassera Shayan darshan is at Jatipura, Govardhan, Mathura.
श्रीनाथजी स्वयं इस घटना का मुझसे विस्तार में उल्लेख करते हैं:
गुरुश्री के विनती करने पर श्रीनाथजी उनके ‘लालन’ स्वरूप में प्रगट होते हैं, उनके मुखरविद से दर्शन देते हैं।
श्रीनाथजी और गुरुश्री का सखा भाव है, और मैं गवाह हूँ ऐसे अनेक दिव्य खेल और लीला जो गुरुश्री और दिव्य शक्ति के बीच घटित होती रहती हैं।
२००९/१० में मुझे सुधीर भाई ने दर्शन के बारे में बताया। जिस कैमरा से फोटो लिए वह मेरा था और नेगेटिव मेरे पास ही थे। सुधीर भाई ने सिर्फ फोटो लेते वक्त उपयोग करा था। चूँकी यह मेरी पहली यात्रा थी मुझे ज्ञात नहीं था की मुखारविंद के दर्शन कैसे होते हैं। जब मैंने फोटो देखे थे तो इस सफेद उज्जवल दर्शन ऊर्जा पर कुछ ध्यान नहीं दिया था।
आखिररकर, श्रीजी का हुकुम पालन करते हुए जब गुरुश्री ने मुझे ध्यान से फोटो दिखाए मैं तो खुशी के मारे उछल पड़ी। इतनी असाधारण अनुभूति थी!
अब २०१० में मुझे श्रीनाथजी का गुरुश्री के साथ जो गहरा सम्बंध है, उसके बारे में अधिक समझ भी है। उनके आपस के खेल अनगिनत हैं और सोचने पर मजबूर कर देते हैं के श्रीनाथजी क्या नाथद्वारा हवेली में रहते भी हैं की नहीं?
ShreeNathji also explains the happening to me in His own words:
At Gurushree’s request ShreeNathji, in His Lalan Swarup Appears for the pujan time from His Mukharvind at Jatipura. They share the Sakha bhao to the fullest, and I have been a witness to many such miraculous Plays of the Divine with Gurushree.
It was later in 2009\10 that Sudhir bhai showed me these darshans. It was my camera and I had the negatives with me, Sudhir bhai only took the seven photos of the pujan. Being my first visit here I did not know what the Mukharwind looked like without these Darshans. So I just assumed that the white colour visible is a part of the Shila, and did not bother to look closely at these divine photos.
Now when finally it was pointed to me I just jumped with joy! How extraordinary and interesting it is. By 2010 I also had a greater understanding of ShreeNathji and the relationship He shared with Gurushree. In fact it always made me wonder if ShreeNathji even stayed at His Nathdwara Haveli any more!
It was only with ShreeNathji’s order that Sudhir bhai revealed the hidden meaning of these photos.
मेरा वार्तालाप श्रीनाथजी के साथ, उनके शब्दों में:
गुरुश्री सुधीर भाई के ऑफिस मंदिर में जब हम तस्वीर देख रहे थे, ठाकुरजी श्रीनाथजी का आगमन होता है, और वे जिद्द करते हैं की दर्शन के समय का विवरण वे खुद करेंगे।
श्रीजी फोटो के विवरण मुझे बताते हैं की मैं जब पूजन में व्यस्त थी उस समय श्रीनाथजी और गुरुश्री का जीवंत वार्तालाप भी चल रहा था, जो वे मुझे अभी बताते हैं।
(जैसा वार्तालाप हुआ वही शब्द रक्खे हैं, सिर्फ थोड़ा व्याकरण और कुछ पंक्ति को इधर उधर करने की जरूरत थी। श्रीजी नटखट तो हैं ही, कुछ वाक्य या शब्द बिना सोचे बोल देते हैं, जिनको ठीक करने की जरूरत पड़ी है। इस संवाद में वे वर्णन करते हैं कैसे सुधीर भाई ने उन्हें विनती करी की मेरा(आभा का) पूजन स्वीकार करें, और दर्शन देने की कृपा करें।
समझ के लिए सुधीर भाई के बोले हुए शब्द ब्रैकट में रक्खे हैं, श्रीजी ने जैसे मुझे सुनाया)
My conversation with ShreeNathji in His own words:
As we looked at the photos in Sudhir bhai’s office mandir, Shreeji Appeared. He insisted that He explain how and what happened at the time of these darshans.
Shreeji points the details in all photos to me. While I did the pujan, ShreeNathji and Gurushree were busy with their own ‘live’ conversation too, as Shreeji explains to me now.
(I have kept all conversation as it happened, except for a little grammar and positioning of few sentences, as Shreeji, being the little naughty child speaks out of context at times without realisation. In His dialogue, Shreeji describes how Sudhir bhai requested Him to accept my pujan and give darshans. What Sudhir bhai requested is in the brackets in Shreeji’s words).
श्रीजी मुझे उस दिन का विवरण सुनाते हैं,
Shreeji narrates that day’s detail to me,
“तू मुझे माला देती है, दो मोगरा माला। मेरा सुधीर भी माला पहनता है ,(उसको मैं ने ही बोला था) चल माला पहन मैं देता हूँ। तो सुधीर मान जाता है ‘अच्छा श्रीजी पहनता हूँ’; वो हमेशा मेरा कहना पूर्ण मानता है”।
‘You offer Me two mogra garlands. My Sudhir also wears the Mala, I am giving to you, I order him to wear. Sudhir agrees, ‘Okay Shreeji I’ll wear’. He always follows my instructions completely”.
“सुधीर ने मुझे बोला पहले ही बता दिया था, ‘श्रीजी ये तो कुछ मानती नहीं है आप इसे कुछ दिखा दो, कुछ दर्शन दे दो’।
मैं ने इस से पूछा, ‘अच्छा तो मैं क्या करूँ’?
सुधीर ने मुझ से कहा की मुखारविंद में जाकर बैठ जाओ। ये (आभा)पूजन विधि में नहीं मानती है, फिर भी मेरे कहने पर आई है आपका पूजन करने; आप के पास आई है।
चल तू (सुधीर) बोलता है इसलिए मैं मुखारविंद में बैठता हूँ। किंतु ये तो यही सोचेगी की कितना दूध बेकार हो रहा है”।
“Sudhir had told Me earlier, ‘Shreeji she (Abha) does not believe in any rituals, please show her something, grant her some darshans;
So I ask Sudhir, Okay what should I do?
Sudhir tells Me to go sit in My Mukharvind. and says that even though she (Abha) does not believe in any type of ritual pujan, yet she has come here on my instructions and wishes to do Your pujan;
If you (Sudhir) tell Me to I will go sit in My Mukharvind, but she will think of how much milk is going waste”.
“जब तू पूजन करती है, सुधीर मुझे कहता है, ‘श्रीजी मुझे नहीं उसको देखो’
तो मैं सुधीर की बात मानता हूँ, अच्छा ठीक है,
यहाँ ये देखो ऐसे बैठा हूँ, ये मेरी ऊँगली है
मेरे हाथ ऐसे हैं, ये मेरा कान है, कान की बूटी है, बाकी सब बाल बिखर गए हैं।
मेरा मुकुट, ये तिलक गोल है, मेरे होठ अच्छे आए हैं, आँख देखो, ऊपर देखता हूँ”।
“When you start My pujan, Sudhir instructs Me, ‘Shreeji, look at her (Abha) not at me’
So I follow what Sudhir says, Okay I will,
You can see here, I am sitting like this, this is My finger
My hands are visible like this, these are My ears, My earrings; rest all My hair are open and flying.
This is My mukut, this is the round tilak, My lips look very good, if you look at My eyes, I am looking upwards”.
“मैं बहुत छोटा सा लालन हूँ, इसी में से बड़ा बन जाता हूँ।शयन में ६ महीने इधर रहना पड़ता है।
सुधीर मुझे बोलता है, ‘तुम वहाँ रहो मैं (सुधीर)फोटो खींचता हूँ’
अच्छा चल तेरी बात मान लेता हूँ, लेकिन इसको मत बताना,(दर्शन के बारे में) मैं बोलूँगा तब बताना””,
I am a very small child in this(Lalan), and from this only I become the larger swarup. Six months during Shayan darshans I have to be here.
(Sudhir tells Me to stay in the Mukharwind, and he(Sudhir) will take the photos).
Okay I will follow what you want Me to do, but you will not tell her (Abha) about these darshans. Only when I give permission you can tell her”.
“तुम लोग यहाँ आए थे उसके पहले सुधीर ने मुझे बताया था,
सुधीर समझाता है, ‘श्रीजी ये आ रही है, ये आपको भेंटना (hug) चाहती है, तो दिखा दीजिए, प्रगट हो जाइए; आपको नहलायेगी, दूध अर्पण करेगी, उपरना, धोती, तिलक, माला, सब देगी’
तो मैंने सुधीर से पूछा, इसको क्यों दूँ, ऐसा क्या किया है इसने मेरे लिए?
सुधीर ने मुझे कहा, ‘श्रीजी ये स्वयं खास है इसलिए”
“Before you’ll reached here, Sudhir had already told Me,
(Shreeji she is coming here, she wishes to hug You, so please show some kripa, give Your darshans; she will do Your abhishek with water and milk, offer You dhoti, uparna, tilak, mala.)
I ask Sudhir why should I give her(Abha), what special has she done for Me?
Sudhir replies, ‘Shreeji she herself is special, thats why’.
“तुमने नाथद्वारा में इसे (सुधीर) कहा था क्या, की मुझे श्रीजी को भेंटना है; तभी से इसके दिमाग में है। नाथद्वारा में तो नहीं हो सकता है। ये तुमने अपनी पुस्तक में भी तो लिखा है।तो ये तुमको यहाँ लेकर आया, गोवर्धन पर। यहाँ सब कर सकती हो,
फिर मैंने सुधीर से पूछा, अच्छा, बता मैं क्या करूँ”?
सुधीर मुझे समझाता है, ‘इसकी पूजा स्वीकार करीए, वहाँ चले जाइए, मुखारविंद में प्रगट हो जाओ, लोग तो वैसे भी भगवान को पत्थर में ढूँढते हैं, आज आप भी पत्थर में प्रगट हो ही जाओ, दर्शन दे दो’
फिर मुझे कितनी देर लगती है!
सुधीर में से निकल कर वहाँ पहुँच गया; सोचा चलो आज दिखाता हूँ, हजारों वैष्णव आते हैं, ऐसा कभी नहीं हुआ, सिर्फ तुम्हारे लिए गया, पहली बार”।
सुधीर ने कहा ‘श्रीजी आप वहाँ प्रगट हो जाओ, मैं फोटोग्राफेर बन जाता हूँ, फोटो लेता हूँ। ये इसका ही कैमरा है, नेगेटिव भी इसके पास रहेंगे, प्रमाण के लिए’
“You had mentioned to Sudhir at Nathdwara that you wish to hug Shreeji, since then it had been on his mind. This is not possible at Nathdwara; you know as you’ve mentioned it in your book too. That is the reason he brought you here on Govardhan, as every type of sea and pagan is possible here.
Okay, so what should I do? I asked Sudhir.
(Sudhir explains to Me, please accept her pujan, give Your sakshatkar from Your Mukharwind. other wise also people search for Bhagwan in stone, so today Appear from this stone and grant darshans).
Then how long does it take for Me! I came out from him and jumped there; chalo let’s show everyone, thousands of vaishnavs come here daily, this has never happened before. It was the first time I did this and it was only for you.
(Shreeji You please go Appear and give darshans, I will become the photographer and take the pictures.It is her camera only, the negatives will be with her for the proof if required later on)”.
“मैं भाग कर मेरे मुखार में बैठ गया; लेकिन ये (आभा) तो बहुत लम्बी है, मुझे ऊपर देखना पड़ता है, तो देखता हूँ;
वो पंडा भी है, जो तुमको कुसुम की छोरी बोलता है, वो पूजा भी करवाता है, तुम पूरी तरह से सब करती हो, ये (सुधीर)फोटो खींचता है”।
I run and sit in My Mukharwind; but she is so tall, I have to look up, so I look up at you.
That punda is also there, who calls you Kusum’s daughter, he helps you with the puja, you do everything and he takes the pictures.
“सुधीर ने मुझे पहले ही बता दिया था, ‘श्रीजी ये पूजा में कम मानती है, इतना दूध, सोचती है अरे किसी गरीब बच्चे को पिला देते, बेकार हो रहा है, पत्थर पर लोग डालते हैं, नाली में बह जाता है, किसी को नहीं मालूम वो कहाँ जाता है; ये धोती, उपरना, पता नहीं कहाँ जाते होंगे, ये लोग नक्की वापस बेच कर आते होंगे;
१० लीटर दूध ऐसे ही बहा दिया; तुम ऐसे ही सोचती हो क्या’? श्रीजी ये वैज्ञानिक की तरह सोचती है, हर चीज को प्रश्न करती है, जब तक पूरा जवाब नहीं मिलता नहीं मानती; फिर भी मेरे कहने पर पूरे भाव से आयी है आपके पास, मुझे पूर्ण आस्था से मानती है, इसलिए जाओ पत्थर में बैठ जाओ, पहली बार आयी है; ऐसे बहुत लोग आते हैं, पूजा करते हैं, कुछ सोचते नहीं, सब कर रहे हैं, तो हम भी कर लेते हैं, देखा देखी करते हैं’ श्रीजी मुझे बताते हैं”;
(Sudhir had explained to Me before, ‘Shreeji she does not believe much in doing pujas, she may also think that it is a big waste pour so much milk on a stone, as it flows in a sewage; better use would have been to give it to a poor child; who knows where the offered dhoti and uparna go, for sure they are resold.
10 litres of milk we just poured down, you must really be thinking like that? Shreeji, she thinks like a scientist, so questions everything. Till the time a proper answer is not received she does not believe it.
But in spite of all this she has come here on my instructions as she keeps complete faith on me (Sudhir). So please go sit in the stone, she has come here for the first time; several people come here, complete their puja. They just do everything because they see all others doing the same and don’t think much about anything).
“मैंने सुधीर से पूछा, लेकिन ये पहली बार मेरी पूजा करती है और दर्शन हो जाते हैं, क्या ये फिर नहीं सोचेगी की ऐसा मैंने (आभा) क्या किया है की श्रीजी प्रगट हो गए? शक करेगी, वैज्ञानिक दिमाग तो है ना!”
But I ask Sudhir, that she is doing this puja for the first time and she gets My sakshtar darshans! will she not begin to think again about what she (Abha) has done to have sakshatkar of Shreeji from His Shila? She will doubt again as her mind thinks like a scientist after all.
सुधीर फिर भी समझाता है मुझे, ‘श्रीजी देखो न, नए कपड़े पहन कर आयी है, देखो पायल भी पहनी है, कभी जीवन में नहीं पहनती थी।चाँदला भी लगाया है, इसने तो पूरा श्रिंगार करना छोड़ दिया था, आप के पास सब कर के आई है मेरे कहने पर’
यह (सुधीर) बोला, ‘जाओ श्रीजी मुखारविंद में बैठ जाओ’;
मैं सुधीर की विनती हमेशा सुनता हूँ और मानता भी हूँ; तो मैं मुखारविंद में बैठ गया, स्थिर हो कर; सुधीर ने बोला था हिलना नहीं बिलकुल भी श्रीजी;”
(Sudhir again explains and requests Me, Shreeji please look, she has come in new clothes, worn a payal too which she never did in her life earlier. She has put a bindi too, though she had stopped doing any shringar. Only on my (Sudhir) instruction she agreed to everything and came here).
So Sudhir again requests Me to go sit in My Mukharvind; I always hear Sudhir’s requests, and agree to them too; so I go sit in My mukharvind, without movement; Sudhir tells Me, ‘Shreeji please do not move at all’;
पूजन के बाद मैंने दो माला तुम लोगों को दी। सुधीर को बोला, चल तू भी पहन। फिर तुम लोग ऊपर आए मेरे पास, मेरे प्रागट्य स्थल पर। धूप बहुत तेज थी, काँटे भी बहुत होते हैं। नीचे आकर गिरिराज् को माथा टेकता है।
After completion of the pujan, I gave the two mogra malas to you both. After which you’ll came up to meet Me, at My Pragatya sthal even though it was very hot. There are a lot of thorns too on the way. You’ll bow to Giriraj once you’ll are back down.
[अभी के वक्त में, २००९/१०में, श्रीजी ने मुझे अपना best friend बनाया है; इसलिए आज मुझ से कहते हैं, (इस दोस्ती वार्ता को आप वार्ता पेज पर पढ़ सकते हैं)]
[At present in 2009/10, Shreeji has made me His best friend; so He tells me, (Detail Varta about this can be read in the varta page)]
श्रीजी मुझ से कहते हैं, ‘मेरी बेस्ट फ्रेन्ड’ (best friend) है, मेरी पूरी बात सुनती है, फिर मैं कहीं क्यों जाऊँ.. नहीं जाता।
‘फ्रेन्ड फ्रेन्ड’ गाते हैं श्रीजी।
“सिर्फ और सिर्फ एक फ्रेन्ड – और बनानी भी नहीं”
Shreeji tells me, “She is ‘My best friend’, listens to all that I say, then why should I go anywhere else..I do not go.
‘Friend, friend’, sings Shreeji.
“Only and only friend.. I do not want to make any more also”.
श्रीजी आगे कहते हैं,
“पूरी दुनिया में मेरी एक ही फ्रेन्ड है, दुनिया में बोल दो सबको – वो आभा शाहरा श्यामा है
अरे कोई मानता ही नहीं, बोल बोल कर थक गयी तू(श्रीजी के प्रागट्य के बारे में)
अब ‘मैं’ दिखाता हूँ, चालू कर दिया, ये पहला कदम है, दिखाता हूँ (उनके दर्शन चित्र को बाहर प्रगट करना)
इसको (सुधीर) बोल दिया, मेरेको रोकने का नहीं, बस अब ‘मैं’ खेल करूँगा, ये ‘मेरा’ खेल है
दिखाओ सब को दिखाओ” (दर्शन चित्र);
Shreeji continues to speak,
In the whole world I have only one friend, go tell everyone in the world – It is Abha Shahra Shyama.
Arrey, no one believes what she says, she is tired repeating to all (about the Pragtya)
I will now show all, I have started and this is ‘My’ first step (of ordering us to make His darshans public)
I have told Sudhir to not stop ‘Me’, I will now do ‘My’ Khel (Play) My way.
Go, go, show My Darshan photos to all”;
श्रीजी आगे कहते हैं, “मेरी एक ही फ्रेन्ड है, बस, और कोई नहीं, उसको ही दूँगा, बस आभा शाहरा श्यामा को;
उसके अंदर बैठी शक्ति को भी दिखेगा वो भी समझेगी,
बाकी लोग भी समझेंगे की मैं हमेशा सुधीर शाह की बात क्यों मानता हूँ।
आभा तू अब सभी को बोल सकती है की श्रीजी ने मुझे आज्ञा दी है , सब को बताने की लिए; मैं श्रीजी की बेस्ट फ्रेन्ड हूँ”।
Shreeji continues, “I have only one friend, no one else. I will give all to her, only Abha Shahra Shyama;
All shaktis within her will also see and understand,
Rest of the people will also now understand why I always follow what Sudhir Shah tells ‘Me’ to do.
Abha you can say to everyone that Shreeji has given hukum to go tell everyone: I am the best friend of Shreeji”.
Shreeji dialogue is complete here.
श्रीजी का वार्तालाप यहाँ पर पूर्ण होता है
पूजन के बाद हम गिरिराज जी के ऊपर जाते हैं। स्वयं श्रीनाथजी प्रभु हमारे साथ गिरिराज जी के ऊपर चलते हैं। हमें उनके प्रागट्य स्थल पर ले जाते हैं।ये वो स्थल है जहाँ पर धूमर गाय ठाकुरजी को दुग्ध पान कराती थी।दोपहर के १२ बज रहे हैं और अधिक गरमी है, ४४* C
श्रीनाथजी के प्रागट्य स्थल पर पहुँच कर अद्भुत अनुभूति होती है। बहुत ही शांति पूर्ण वातावरण लगता है। अगर गुरुश्री ने मुझे जल्दी उठने के लिए नहीं कहा होता, तो मैं इसी आनंद की अनुभूति में खो जाना चाहती थी।
From here we proceed to the spot from where we can climb up on the Giriraj. We reach the actual spot where the cow Dhumar, fed milk directly to ShreeNathji.
As it is 12.00 in the noon, it’s extremely hot with the temperature of 44 °C.
The Giriraj is burning, and it takes some persuasion from Gurushree, for me to want to climb up; we have taken off our chappals, and it is like walking on hot coals. Miraculously, once on the exact spot of Shreeji Pragatya, it is a totally different feeling. At my request we all decided to sit for a while and though it being very hot, the peace experienced there is out worldly. If Gurushree Sudhirbhai had not insisted to leave I don’t think I would want to get up in a hurry. May be Shreeji has accompanied us up here and enjoys Himself at His Appearance Sthal.
इस स्थल से नरो का प्राचीन घर भी नजर आता है।जहाँ के रास्ते से वो भागती हुई ऊपर ठाकुरजी से खेलने आती थी।हम श्रीजी मंदिर में दर्शन करने जाते हैं। यह वही प्राचीन मंदिर है जो श्री पूरणमल ने सिद्ध कराया था।
जीर्णोधार हुआ SV २०५९ में, श्री रमेश मथुरा दास गिरधर के माध्यम से।
We are able to see Naro’s house too, and the maarg from where she climbed up to play with Shreeji. We do darshans of Shreeji’s mandir on Shri Govardhan. This was originally built by Shri Puranmall, which later was done Jirnodhar by Shri Ramesh Mathuradas Girdhar in SV 2059, according to the plaque put up on the mandir entry.
नीचे उतरने के पश्चात माथा टेक कर गिरिराजजी से क्षमा याचना करनी होती है।क्योंकि हम उस पवित्र पर्वत पर ऊपर चढ़े थे।
Once down we have to bow and ask forgiveness for having stepped on the sacred Giriraj.
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दिव्य लीला हमेशा चलती रहती है।९ जून २००५ एक महत्वपूर्ण दिन है, जब मुझे बहुत ही अचम्भित और आनन्दमय पवित्र दिव्य लीला में प्रवेश मिला।
Divine leela never ends, and 9June 2005 in fact was an extraordinary entering for me in a realm of high purity and extraordinary divine play and darshans!
Jai ho Prabhu,
Jai Shree Krishn, Radhe Krishn,
Jai ShreeNathji!
जय प्रभु
जय श्री राधे कृष्ण
जय श्रीनाथजी भगवान
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Divya Anubhuti at Giriraj Govardhan Mukharwind | |
Second time darshans as Shree RadhaKrishn on 5th January 2011 |